THE KHAN DESINGE DIARIES

The khan desinge Diaries

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Ye sunte hi mere andar josh aa gaya. Aur maine lund chut pe rakha aur use jo4 se dhakka maara mummy ki chut bahut tight thi. Isliye mujhe thoda dard hua lekin baad me maine dhakke maar maar ke mummy ko us raat bahut choda….

मैं अमीर नहीं हूँ। बहुत कुछ समझदार भी नहीं हूँ। पर मैं परले दरजे का माँसाहारी हूँ। मैं रोज़ जंगल को जाता हूँ और एक-आध हिरन को मार लाता हूँ। यही मेरा रोज़मर्रा का काम है। मेरे घर में रुपये-पैसे की कमी नहीं। मुझे कोई फ़िकर भी नहीं। इसी सबब से हर रोज़ मैं निज़ाम शाह

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अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर भगवतीचरण वर्मा

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पहले अपना परिचय देता हूँ, मेरा नाम समीर है … पूरी कहानी पढ़ें

असलम अपने लोगों के साथ हमारे घर आया, और दीदी को उनके कोठे की रंडी बनने के लिए मनाने लगा। पढ़िए मेरी दी ने उसके ऑफर का क्या जवाब दिया।

वह बात न मीरा ने उठाई, न ख़ुद उसने। मिलने से पहले ज़रूर लगा था कि कोई बहुत ही ज़रूरी बात है जिस पर दोनों को बातें कर ही लेनी हैं, लेकिन जैसे हर क्षण उसी की आशंका में उसे टालते रहे। बात गले तक आ-आकर रह गई कि एक बार फिर मीरा से पूछे—क्या इस परिचय को स्थायी राजेंद्र यादव

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सुखदेव ने ज़ोर से चिल्ला कर पूछा—“मेरा साबुन कहाँ है?” श्यामा दूसरे कमरे में थी। साबुनदानी हाथ में लिए लपकी आई, और देवर के पास खड़ी हो कर हौले से बोली—“यह लो।” सुखदेव ने एक बार अँगुली से साबुन को छू कर देखा, और भँवें चढ़ा कर पूछा—“तुमने लगाया था, द्विजेंद्रनाथ मिश्र 'निर्गुण'

धत्! कल हो गई. देखते नहीं. रेशमी बूटों वाला सालू...?"

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